तिशनगी
Posted On July 24, 2021
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ये तबाही क्यों बरपा है चारों ओर मेरे,
क्या जान लेना है , क्या और हासिल करोगे अभी,
कितनो के वजूद को कुचलना है अभी,
मुद्दत हुई तुमको खुद से मिले हुए कही,
अक्स देखो तो खुद का …
दरारें है , शिकन है , फसाने है..
अक्स देखो तो खुद का…
दरारें है , शिकन है , फसाने है..
वो जो हस्सास सी आँखें थी तुम्हारी,
जिन में कभी डूब रातें कटी थी,
यूँ काली स्याह रात सी डराती है अब …
इस हुजूम में भटक जाओगे कही..
इस हुजूम में भटक जाओगे कही…
ये तिशनगी के मंजर है मेरे दोस्त…
तबाह होने के लिये क्या इतनी तलब काफ़ी नहीं …
ये तबाही क्यों बरपा है चारों ओर मेरे…
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