कहानी
Posted On July 25, 2021
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लफ़्ज़ है, मायने है,
पर ना जाने मैं टाँक नहीं पाती उन्हें
किसी पंक्ति में, किसी सीरें में,
हर शब्द हाशिये का, एक बिन्दु का
मोहताज है कही,
एक मायने की शक्ल लेने के लिये …
समझो ना..
कभी हाशिये छूट जाते हैं …
तो कभी बिन्दु लुढ़क के ना जाने
दिमाग के किस कोने में अटक सी जाती है,
सीरा पकड़ो तो ..लम्हों का, मिनटों का..
शायद बना दूँ एक कहानी मैं ..
जिसे सिर्फ़… तुम और मैं ही पढ़े…
लफ़्ज़ है …मायने हैं….
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