दोराहा
Posted On July 25, 2021
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छोड़ दो ना उन ग़लतियों में मुझे
खलने दो ना स्टापू छिपा छुपी
उस नुक्कड़ से उस चौबारे तक..
उस टोली के संग …
चलो बैठे यही चौक पे,
आज उड़ाये खिल्ली चौबे जी की,
ले आओ ना रंग बिरंगी गिट्टियाँ, ताश या पतंगें,
देखो…कितने रंग बिखरे मेरे चारों ओर.
महसूस करने दो ना ..
उस क़िले की सख़्त दिवारों की
सीलन की ख़ुशबू को,
चिल्लाने दो ना ज़ोर से आज इन झरोखों से मुझे,
चुभने दो गर्म सर्द सी रेत मेरे हाथों में पाँव में,
ढलते नारंगी सूरज को डूब जाने दो ना…
मेरी चुन्नरी में,
कुछ वक़्त दो ना..
सब समेटने के लिये मेरी आँखों में ..
ख़ाली हथेलियों में
छोड़ दो ना…
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