अबोध चांद
ए चांद – तुम बहुत अल्लहड़ नादान हो
रोज़ चुपके से धरती पर उतर आते हो
कल कल बहती नदी को दर्पण बना कर
मुखड़ा अपना रोज़ संवारते हो
नदी अपने ह्रदय पटल पर देख कर तुम्हें
शर्म से मंद मंद मुस्कुराती
प्रेम बहाव में बह कर लहरों को समेट लेती है
अपनी धड़कने रोक कर तुम्हें प्यार से निहारती है
फिर थोड़ी चंचल शोख़ी से हिलोरे ले कर
तुम्हारे संग बह कर ठिठोली करती है
तुम भी लहरों के साथ छेड़खानी करते हो
फिर ख़ुद ही शर्माते हो
हिचकोले खाकर कभी नीचे गिर कर सहम जाते हो
कभी उपर आ कर मुस्कुराते हो
कभी हवा के छूने पर नाराज़गी जताते हो
मैं भी तुम्हारी इन अदाओं को रोज़ देखती हूँ
ओ पूनम के चांद – आज अपनी आभा से तुमने
पानी में ऐसी आग लगा दी
तूफ़ान उठने लगा नदी में
अन्दाज़ नहीं तुम्हें उसके वेग का
तुम को नीचे ऊपर गिरते देख कर
मैंने झट से अपनी हथेली पे उठा लिया
आंचल में नन्हे बालक की तरह छुपा लिया
सुनहरे शब्दों में अलंकृत कर के तुम्हें
कागज़ का श्रृंगार कर दिया
कविता ‘अबोध चाँद’ ने रिवर्स द्वारा आयोजित काव्यांजलि प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त किया है