रातों की सरहदों
रातों की सरहदों पर
सुबह के निशान मिले
तारों के झुरमुटों परे
सूरज के मकान मिले…
बरामद हुई अंधेरे की पोटली से
तमाम शज़रो की छाया
दिन की अदालत को
धूप के बयान मिले…
मिले कई स्याह मोती
अन्धेरे जहाँ पर बिखरे थे
तलवों में अक्सर चुभते रहे
किरणों के टुकड़े तमाम मिले…
पहाड़ों की तलहटी में
धुआँ उगलती रहीं खपरैल की छतें
कि रात भर की ठिठुरन को
कुछ धूप का ईनाम मिले…
कलफजदा़ सपाट सडकें सारी
आदम की बस्तियों से गले मिलती रहीं
बेफिक्र लहराती पगडंडियों को
फकत जंगल मिले बियाबान मिले…
समय की कुदाली ने
नीव सभ्यताओं की खोद दी
कहीं कोई तो अवशेष मिले
इतिहास का कुछ सामान मिले…
रातों की सरहदों पर
सुबह के निशान मिले
तारों के झुरमुटों परे
सूरज के मकान मिले.