तितली मर क्यों जाती है?
पापा ! मेरी तितली मर क्यों जाती है ?
कितने प्यार से,
धीरे से, हौले से;
मैं इसे पकड़ती हूँ ।
फिर इसे सख्ती से नहीं,
कोमलता से थामती हूँ ।
फिर एक हाथ से,
काँच की एकदम साफ़
चमकदार खाली दवात में
चुपके से उसे रख देती हूँ ।
ढक्कनभीउसका
ठीक से बंद कर देती हूँ ।
थोड़ीदेरवह
इधर से उधर,उधर से इधर,
ऊपर से नीचे, नीचेसेऊपर
पंखों को हिलाती घूमती फिरती है ।
पर पापा ! वह मर क्यों जाती है ?
मैंने इसे बिस्कुट दिया
टॉफ़ी भी दी खाने को
पानीकेअतिरिक्त
दूध भी दिया पीने को;
मैंने भूखा– प्यासा भी नहीं रखा कभी;
फिर भी मेरी तितली मर क्यों जाती है ?
मैं इससे बात करती हूँ,
कहानी इसे सुनाती हूँ ;
इसके लिए मीठा– मीठा गीत भी
मैं बार– बार गाती हूँ ।
लोरी गा– गाकर रात को
थपकी दे इसे सुलाती हूँ ।
इतना ध्यान मैं इसका रखती हूँ;
फिर भी पापा ! यह मर क्यों जाती है ।
बिटिया ! तुम तो बड़ी नासमझ हो
अनजान हो, नादान हो
और बहुत भोली हो ।
आँसू पोंछो, चुप हो जाओ;
तुम अब तक बहुत रो ली हो ।
सुनो ! ध्यान से सुनो
तुमने अपनी तितली रानी को
प्यार से खिलाया– पिलाया,
लोरी गाकर थपकी दे सुलाया;
पर तुमने उसे साँस तो
लेने ही नहीं दिया ।
साँस ही तो प्राण है,
प्राण ही तो जीवन है ।
दवात का ढक्कन बंद कर
तुमने तो उसका
दम ही घोंट दिया,
साँस उसका रोक दिया;
इसलिए तुम्हारी तितली मर जाती है;
हर बार हर तितली तुम्हारी मर जाती है ।
इसको गुलाम रहकर जीना भी
अच्छा नहीं लगता है ।
यह तो वायुमंडल में आकाश तक
उड़ान भरना चाहती है ।
हर दिशा में विचरण यह करना चाहती है ।
इसको आज़ाद यूँ ही उड़ने दो,
जहाँ चाहे वहाँ विचरने दो ।
फिर यह नहीं मरेगी,
तुम्हें दुआएँ भी देगी ।
समझ गई पापा समझ गई
मुझे बात आज समझ आ गई
कि मेरी तितली क्यों मर जाती है ?
बार–बार मेरी हर तितली
क्यों मर जाती है ।
अबमैंकभीउसे
दवात में बंद नहीं करूँगी ।
अब मैं उसे उड़ने दूँगी,
उसके साथ–साथ स्वयं भी
जहाँ वह जाए वहाँ दौड़ूँगी
और उसके साथ हर खेल मैं खेलूँगी ।
अब उसको मैं नहीं मरने दूँगी
पापा ! अब उसको मैं नहीं मरने दूँगी ।।