गुलज़ार
Posted On May 12, 2021
0
3.8K Views
तुम बस कहते हो और
कह के चल देते हो,
देर तक दिल उदास रहता है।
तुम्हारी नज्मों को मैं बार बार पढ़ता हूँ।
और हर बार नए माने निकल आते हैं।
तुम्हारे साँस लेने छोड़ने के अंदाज
नज़्म पढ़ते हुए ठहरना और
फिर से पढ़ना।
मैं जो ख़ुश हूँ तो मानी भी जुदा होते हैं
और उदास हूँ तो लफ़्ज़ भी रो देते हैं।
तुम्हारी नज़्म
तुम्हारे अशयार बिला कोशिश
आके सीने में अटक से जाते हैं।
तुम्हारी नज्मों से ग़ालिब और
अमृता का पता मिलता है।
कोई गुलकंद सा दिमाग़ों में हौले घुलता है।
जिस्म की मौत मुंतखिब है मगर
लफ़्ज़ सदियों तक ज़िंदा रहते हैं।
तुम फ़रिश्तों की शिफ़ा फूँकते हो इनमें।
ये न मरते हैं न मरने देते हैं।
तुम्हारी पुरसोज
शाइस्ता सी आवाज सुनकर
जिस्म, दिल, रूह
एक शक्ल में ढल जाते हैं।
तुम जीते जागते इंसान हो या सिर्फ शायरी हो
किसी गली क़ासिम का पता दे दो यारा…
तुम से गुलज़ार,
….ऐ गुलजार ……कहाँ बनते हैं।
Trending Now
Aabhaas Edition 2
March 19, 2024
Aabhaas Edition 3
August 1, 2024