बूंदों का गीत
Posted On December 14, 2020
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मदमाते बरसात के पल
टिप-टिप झरता है पानी
जो इंद्रधनुषी धूप लिए
थिरकता और मचलता है
यह फूलों को सहलाता है
यह पत्तों को भिगोता है
बहती हवा कुछ कहती है
फूलों का चुम्बन लेती है
शर्मा के वह झुक जाते हैं
पत्तों के झुरमुट में छुपी-छुपी
इक कोयल अपना गीत लिए
बूंदों का गाना सुनती है…
इन गीतों को इतने सालों
मैं सुनना क्यों थी भूल गयी?
दिल की उर्वर धरती से फिर
एक सुर ढला, यह गीत चला
उड़कर, तुम तक पहुंचा –
तुम भी इसमें भीगो, डूबो
तपते-प्यासे मन को अपने
इस प्रीत गीत में खोने दो
एक राग तुम भी गाओ
जो सारी धरती पर छाए
अम्बर की हद तक गूँजे
कण कण में समा जाए
प्रभु-प्रेम से ओत-प्रोत
चिर संगीत जो जन्मेगा—
हर चिड़िया उसको गाएगी
हर फूल उसी पे रीझेगा
हर बूँद उसे ही लाएगी—
तुम भूल न जाना यह गाना
यह गिरती बूंदे कहती हैं:
मैं बूँद भी हूँ, और फूल भी हूँ
मैं कोयल भी और कूक भी हूँ
मैं तुम में, उस में, सब मे हूँ
यह ओम की धुन हर सू सुनना
और सुनकर अनहद हो जाना
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