बचपन का चाँद
Posted On March 25, 2021
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बचपन का वोह चाँद
खिड़की से झांकता हुआ
उस में बैठी चरखा कातती
सफ़ेद बालों वाली बुढ़िया
साफ़ नज़र आती थी
उस कमरे को छोड़े सदियाँ बीती
उस घर के कितने सितारे खो गए
पर ना जाने क्यों
मेरे मन की रात अब भी
उन तारों से जगमगा उठती है
आज मुझे चाँद की असलियत मालूम है
उसकी खुरदुरी ज़मीन पर कोई नहीं रहता
फिर भी न जाने क्यों
चाँद में आज भी
मुझे चरखा कातती
एक परछाईं दिखती है
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