निराला
सौंदर्य दीप्ति से आलोकित
युग चेतनता के संवाहक
संस्कृति के जागरुक प्रहरी
तुम पूत मनुजता के गायक
छन्दों में उर की पीड़ा का
बाँधा था कोमल स्पंदन
अपने म्रदु मेघ मन्द्र स्वर से
सरसाया कविता का कानन
साहित्य जगत के अग्रदूत
अपने युग के तुम थे बसन्त
टूटे पर झुके न जीवन भर
प्रलयंकारी पौरुष अनन्त
संघर्षों का आसव पीकर
शूलों पर चलते थे निर्भय
असुरों से छीन सुधा घट को
जग में ला बांटा मृत्युंजय
प्रस्तर से दृढ़ है काव्यपुरुष
अपनी धुन के मतवाले तुम
सीमाओं में भी मुक्त पुरुष
सचमुच थे एक निराले तुम