लन्दन की लडकियाँ
जब देखती हूँ
लन्दनकीइनलड़कियोंके
चेहरे की दमक,
क़दमोंकाआत्मविश्वास
और आभा का तेज,
तो न चाहते हुए भी
मेराख्यालमेरेदेशकीलड़कियोंपर
चला जाता है
और मुझे याद आ जाता है
सर्कस का वो खेल
जिसमें एक लड़की को एक गोले पर
बाँधदियाजाताथा
और वो गोले को घुमा दिया जाता था–
एकआदमी
उसपर चाक़ू पर चाक़ू फेंकता
औरवोउसलड़कीकीजानबचाकर
उसके आसपास चिपक जाते!
उसखेलमें
आदमीसमझदारीसेचालचलता
औरचाक़ूकेवारसे
लड़की बच जाती
पर चाकू तो लड़के के हाथ में ही था!
हमारे देश की अधिकतर लड़कियाँ
सर्कस के उस खेल की तरह
जब तक बंधी रहेंगी
और समाज चाक़ू चलाता रहेगा
तोउनकातोसाराध्यान
बचने में ही लगा रहेगा ना?
कहाँ से लायेंगी मेरे देश की लड़कियाँ
लंदनकीलड़कियोंसा
तेज, आत्मविश्वास और दमक?